Friday 9 March 2012

गजल -१




एक दरिया है आसमानी -सा
जिसमें वो रहता है कहानी -सा

जिन्दगी हो गयी है लफ्जों -सी
उसमें बसता है कोई मानी -सा

सारा दिन खैरियत से रहता है
रात को बहता है वो पानी -सा

उसके साए में सिमट आया हूँ
जो महकता है जाफरानी -सा

उन सुरंगों में भटकता हूँ मैं
जिन में रहता है वो निशानी -सा 

3 comments:

  1. जिन्दगी हो गयी है लफ्जों -सी
    उसमें बसता है कोई मानी -सा

    बेहतरीन ......बा-कमाल गजल ! हर शेर गहराई लिए हुए ! बहुत बहुत बधाई !

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  2. स्वागत नए ब्लॉग का. ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी. शायद पहले भी कहीं पढ़ी थी. दोनों कविताएं अच्छी हैं. फिर से बधाई.

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  3. जिन्दगी हो गयी है लफ्जों -सी
    उसमें बसता है कोई मानी -सा
    बहुत खूब!

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