Friday 9 March 2012

हमारा क्या है



 
 हमारा क्या है
भेज दो कहीं
ले आयेंगे वहीँ से कुछ हीरे और जवाहरात
दुःख के सागर में उतरेंगे तो समेट लायेंगे
नमक का पहाड़
मछलियों की आँखों में छिपा दर्द
मन की सीपियों में भर लेंगे
श्वेत वैराग्य के मोती
हर्ष के चमकदार माणिक
 ज्ञान के ललछाये मूँगे
 
एकांत के रेगिस्तान में भेज दो
ले आएंगे समूची रेत का इतिहास
उसकी वंश-परम्परा
ऊँट से उसका रिश्ता
और प्यास से उसका रोमांस
मृग-मरीचिका भर लायेंगे पलकों में
होठों पर लिख लाएंगे
रेत का स्वाद
 
भेज कर देखो
हमें कुंठा के घने जंगलों में
बीन लाएंगे
हर प्रजाति की अभिशप्त लकड़ियां
पेड़ों की अनकही कहानियां
उल्लुओं की दन्त कथाएं
शेरों के हरम के किस्से
मोरों की अठखेलियां
बंदरों की चुहलबाजियां
सियारों की कमबख्त आवाज़ें
ले आयेंगे किसी भी जंगल  का नक्शा
हमारा क्या है
भेज दो हमें कहीं भी
 
 
आवाज़ के घर जाएंगे तो
शब्दों का शहद
सन्नाटे की चौखट से
वीरानगी का सूफ़ीपन
सन्तों की कुटिया से प्रेम
शराबियों के झुण्ड से
थोड़ी सी मस्ती
कसाई के घर से
ले आएंगे निस्पृह बर्बरता
कमीनों के साथ बिठा दो
चुन लेंगे उनकी शातिर निगाहें
हमारे हाथों में कलम है
और सीने में कवि का कलेजा
 
कहीं भेज कर हमें देखो तो 
एक बार 

5 comments:

  1. हमारे हाथों में कलम है
    और सीने में कवि का कलेजा

    कहीं भेज कर हमें देखो तो
    एक बार

    बहुत सुंदर कविता !!

    मैं क्या करूँ मेरी फितरत है आशियाँसाजी ,
    पड़ा मिला कोई तिनका उठा लिया मैंने !

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  2. ये छोटे-मोटे अपराध नहीं हैं
    इनके लिए तो मिलना ही था
    महानिर्वासन
    .................आवाज़ के घर जाएंगे तो
    शब्दों का शहद
    सन्नाटे की चौखट से
    वीरानगी का सूफ़ीपन
    ....वाह .... अद्भुत हैं ये कवितायें ...बहुत बधाई ....

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  3. "हमारा क्या है
    भेज दो हमें कहीं भी"
    सहज एवं प्रभावी कविताएं!
    ब्लॉग प्रारंभ करने के लिए हार्दिक बधाई!

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  4. वाह! अद्भुत विम्बों के माध्यम से प्रवाहित होती कविता...
    कवि का प्रभावी हस्ताक्षर!
    सादर!

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  5. बहुत ही सुंदर और अर्थपूर्ण लगी कविता. साधुवाद.

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