एक दरिया है आसमानी -सा
जिसमें वो रहता है कहानी -सा
जिन्दगी हो गयी है लफ्जों -सी
उसमें बसता है कोई मानी -सा
सारा दिन खैरियत से रहता है
रात को बहता है वो पानी -सा
उसके साए में सिमट आया हूँ
जो महकता है जाफरानी -सा
उन सुरंगों में भटकता हूँ मैं
जिन में रहता है वो निशानी -सा
जिन्दगी हो गयी है लफ्जों -सी
ReplyDeleteउसमें बसता है कोई मानी -सा
बेहतरीन ......बा-कमाल गजल ! हर शेर गहराई लिए हुए ! बहुत बहुत बधाई !
स्वागत नए ब्लॉग का. ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी. शायद पहले भी कहीं पढ़ी थी. दोनों कविताएं अच्छी हैं. फिर से बधाई.
ReplyDeleteजिन्दगी हो गयी है लफ्जों -सी
ReplyDeleteउसमें बसता है कोई मानी -सा
बहुत खूब!